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आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी तो ख़्वाब पाले हैं..! गिरत

आहिस्ता चल ज़िन्दगी,
अभी तो ख़्वाब पाले हैं..!

गिरते हौंसले हमने,
ख़ुद ही सँभाले हैं..!

जीवन क़ैद अंधेरों में,
स्वार्थ के यहाँ उजाले हैं..!

चेहरे से सुन्दर दिखते पर,
मन के सभी काले हैं..!

धन दौलत प्रमुख यहाँ,
निर्धन को समाज निकाले है..!

मन में मक्कारी का मैल लिए,
दिखावटी दिलवाले हैं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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