वो जात कि तवायफ थी। लेकिन उसने आज तक अपना जिस्म किसी को पेश नहीं किया था।वो हवसी मर्दों वाले भेड़ियो से हर वक्त चौकन्ना रहती थी। जिन्हें हवस बुझाने के लिये ऐसी बकरी कि जरूरत थी जो उनके हां मे हां मिलाये । तवायफ का असली पेशा नाच गाना ही होता है उसी से उसके घर का चूल्हा जलता है इस समाज कि गंदगी ने आखिर उसे भी इस दलदल मे धकेल दिया । इस समाज के हर एक मर्द क्रमिक; ग्रेजुएट अनपढ़ गवार कि दिमागी सोच औरत के लिये बस यही सोचती है । "औरत मे नरम व गर्म पतली व गोल टांगे गोल मटोल नाफ और बल खाती कमर पसन्द है और बाकी के ढांचे से अनजान ह। काश कि यह सब मर्द उस औरत के ढांचे से हट कर देख सकते । जैसे नंगा जिस्म देखने के लिये चश्मा उपलब्ध है जो औरत के कपड़ों के अंदर नंगा देख सकता है । काश कोई ऐसा चश्मा बना सकता जिसे नंगे जिस्म मे पवित्रता देखा पाता . उस चश्मे से तवायफ जिस्मफरोस के अंदर हजारों दरारों को देखा जा सकता ।। खुदा जिस दिन ऐसे मर्द पैदा हो गये न तो फिर कोई तवायफ रहेगी और न कोई जिस्मफरोस (उस दिन में भी यकीन कर लूंगा कि रिश्ता आदम व हव्वा के सिवा और भी बहुत कुछ है