आकाश की नाज़ुक बांहों में, इक चांद पिघलते देखा है ! जुड़वा होंठों को छुप छुप कर, हर राज़ उगलते देखा है ! देखा है पागल सांसों का, हद से भी गुज़रता पागलपन, ये तब तब देखा है मैंने, जब तुझको हंसते देखा है ! मुस्कुराते रहो