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आकाश की नाज़ुक बांहों में, इक चांद पिघलते देखा है

आकाश की नाज़ुक बांहों में,
इक चांद पिघलते देखा है !
जुड़वा होंठों को छुप छुप कर,
हर राज़ उगलते देखा है !
देखा है पागल सांसों का,
हद से भी गुज़रता पागलपन,
ये तब तब देखा है मैंने,
जब तुझको हंसते देखा है ! मुस्कुराते रहो
आकाश की नाज़ुक बांहों में,
इक चांद पिघलते देखा है !
जुड़वा होंठों को छुप छुप कर,
हर राज़ उगलते देखा है !
देखा है पागल सांसों का,
हद से भी गुज़रता पागलपन,
ये तब तब देखा है मैंने,
जब तुझको हंसते देखा है ! मुस्कुराते रहो