रूठे रूठे लफ़्ज़ हुए जो,सनम को अब ख़त लिखूं कैसे लरजते बिखरते संभलते जज़्बातों को बयां करूं कैसे नवा-ए-दर्द के शोर में काग़ज़ का दामन भी भीग गया है ज़मीं-ए-एहसास में सोए हुए अल्फ़ाजों को जगाऊं कैसे बेबस सदाओं में भी मेरा इश्क इबादत में सूफियाना है माज़ी की सरमस्ती में डूबी परछाई को पीछे छोड़ूं कैसे हर्फ-ए-नवा लिबास-ए-ख्याल में दर्द बन उतर जाता है लिखने बैठूं ग़ज़ल तो एहसासों को बे-असर सा ढालूं कैसे लहज़े में तेरे ना जाने किस बात से तल्ख़ी-ए-इमरोज़ है सफ़्हा-ए-क़िर्तास पर तहरीर में ठंडी सी तासीर भरूं कैसे अहद-ए-वफ़ा से 'नेह' की इमारत को मुस्तहकम किया है इसकी क़िमत मैं खुशी के चंद सिक्कों में तुम से मागूं कैसे। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1003 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।