क्यों खिलाफ है प्यार के सर-ए-दहर, क्यों इश्क़ के प्रति है हवाओं में ज़हर, क्यों प्यार कर लें तो होती है आशोब-ए-दहर, अरे प्यार ही तो करतें हैं इस चमन -ए- दहर, क्यों हम-नफ्स तुझे खोने का हैं डर, क्यों सुकून भरा तेरे साथ चार कदमों का हैं सफ़र, क्यों इश्क़ की रवानीयों पर बरसता है कहर, आख़िर क्यों होती है कठिन मोहब्बत की यह डगर, हुजूम-ए-दहर को क्यों सुकून नहीं हर पल, आख़िर क्यों यह रिवायतें हैं रसम-ओ-रह-ए-दहर। ♥️ Challenge-530 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।