मुख़्तसर इश्क़ की अब कहानी रही! "जान"जानिब हवस की पेशानी रही! वक़्त ने यूँ सताया मुझे जानेमन! कशमकश में मेरी ज़िन्दगानी रही! हुस्न पर नाज करने उसे दो अभी ! उम्र भर कब किसी की जवानी रही! क्या रहा,कुछ नहीं,और दिल में मेरे! तू रही और तेरी कुछ निशानी रही! कब हुई क्या ख़ता सोचता मैं यही! दूर क़िस्मत से क्यों शादमानी रही! मैं दग़ा खा के भी नाफ़हम ही रहा बे-वफ़ा हो के भी तू सयानी रही कौन कब जख़्म कितने दे जाते रहे याद सब कुछ मुझे मुँहज़बानी रही पास जब तक मिरे था मिरा चाँद वो चाँदनी भी मेरी नौकरानी रही ©Chandan sharma jaajib ग़ज़ल mukhtasaR ishQ ki aB kahani rahi "jaan" jaaniB huwaS ki peshani rahi . . waqt nE yuN satayA mujhE Jaan-e-manN kashmakasH meiN meri zindagani rahi