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*बदलते दौर की बदलते बाते...* कुछ अलग सोच और बिछते

*बदलते दौर की बदलते बाते...*
कुछ अलग सोच और बिछते नई बिसाते है
चलो आज बदलते दौर की, बदलते बाते करते है।। 
लोग अब ढ़क्कन के बजाय,
पुरा बोतल ही घुमाते है।। 
ब्लेक बोर्ड पे नही अब,
व्हाइट बोर्ड में, लिखे जाते है।। 
कलम व्हाइट के बजाय,
ब्लेक चलाते है।। 
लड़कियाँ अब चोटी नहीं,
चोटी तो लड़के बनाते हैं।। 
पढ़ा है, गंगा सिर्फ़ हिमालय बहाता है
पर यहाँ तो घर-घर हिमालय, गली-गली गंगा बहाते है।। 
क्या कहे उन दिनों चार-चौराहे पे, हाट-बाजारों की
अब तो घर-घर व्यापारी, और सटर वाली दरवाज़े है।। 
सुना था वो गरीब दिन-हीन, कपड़े फटे पुराने है
पर अब फटे-आधे-अधूरे से कपड़े, रईसों के नजर आते है।। 
बेशक दुनिया बदलनी चाहिए, पर बेहतर होगा
जज्बात वहीं पुराने रहते हैं।। 
                      ✍️ रवि कुमार साहू बदलते दौर की बदलते बाते...
*बदलते दौर की बदलते बाते...*
कुछ अलग सोच और बिछते नई बिसाते है
चलो आज बदलते दौर की, बदलते बाते करते है।। 
लोग अब ढ़क्कन के बजाय,
पुरा बोतल ही घुमाते है।। 
ब्लेक बोर्ड पे नही अब,
व्हाइट बोर्ड में, लिखे जाते है।। 
कलम व्हाइट के बजाय,
ब्लेक चलाते है।। 
लड़कियाँ अब चोटी नहीं,
चोटी तो लड़के बनाते हैं।। 
पढ़ा है, गंगा सिर्फ़ हिमालय बहाता है
पर यहाँ तो घर-घर हिमालय, गली-गली गंगा बहाते है।। 
क्या कहे उन दिनों चार-चौराहे पे, हाट-बाजारों की
अब तो घर-घर व्यापारी, और सटर वाली दरवाज़े है।। 
सुना था वो गरीब दिन-हीन, कपड़े फटे पुराने है
पर अब फटे-आधे-अधूरे से कपड़े, रईसों के नजर आते है।। 
बेशक दुनिया बदलनी चाहिए, पर बेहतर होगा
जज्बात वहीं पुराने रहते हैं।। 
                      ✍️ रवि कुमार साहू बदलते दौर की बदलते बाते...