असर हुआ क्या,कहर हुआ क्या,ना पूछ जब कटी थी मुझसे राह तेरी रूबरू होके मंजिल के ओझल होने की दास्ताँ,बयाँ करती हैं निगाह मेरी होता हैं हादसा दीवानों के साथ,कभी सफर में जब सनम छुड़ा लेता हैं हाथ ताउम्र उनकी तसब्बुर,उनका ख्याल,क्यों दिल को नहीं होता परवाह मेरी तेरी यादें जहन के सतह पे हैं तैरती,साहिल मुहँ फेरे मुझसे दूर हैं दौड़ती दिल की सदा सुनता नहीं कोई,उम्मीद भी कहीं हैं सोई, खोई हैं कहीं आह मेरी आरज़ू के फूल मिल गए खाक़ में,पता हैं खोया कहीं चिठियों के राख में मैं फ़लक का कोई गुमनाम सितारा,जिसे पता हैं,खता हैं, बस चाह मेरी #ग़ज़ल#ख्याल रात भी,नींद भी,कहानी भी हाय क्या चीज़ हैं जवानी भी-फ़िराक़ गोरखपुरी