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जीवन की हर शय में इक किस्सा छिपा पुराना है मौसम-ए

जीवन की हर शय में इक किस्सा छिपा पुराना है 
मौसम-ए-हिज्र है कभी,कभी वस्ल-ए-यार का जमाना है

क्या तेरा गम क्या मेरा गम सबका यही फसाना है
कुछ अपने थे जो छूट गए कुछ गैरों को अपनाना है

कब किस राह मुड़ जाए सफ़र कहां किसी ने जाना है 
हर शय आनी जानी है तुझको सबका साथ निभाना है

माना कि कमजोर है कश्ती और तूफान भी आना है
लाख समंदर गहरा हो पर तैर तुझे उस पार जो जाना है

जो यादें बनकर संग चलता है वो गुजरा सफर सुहाना है
क्या खूब ज़माना था वो भी, ये भी क्या खूब ज़माना है।

©Amar Deep Singh
  #Life #Memories

Life #Memories

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