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भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा कि मैं एक बेटी की

भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा 
कि मैं एक बेटी की मां हुं 

नजरे लगी रहती हैं उसी पर
रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर

महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है 
खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है 

करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की
अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की 

बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना
आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना

जो चलती थी कभी घुटनों पर 
कब वो खड़ी हो गई 

पता ही नहीं चलता कि 
ये बेटियां कब बड़ी हो गई

©Garima Srivastava #MainAurMaa#shayari#poetry#insta#jazbaat_by_garima
भला क्यूं ना रहुं मैं फिक्रजादा 
कि मैं एक बेटी की मां हुं 

नजरे लगी रहती हैं उसी पर
रह ना जाए मुझसे कोई कमी कहीं पर

महीनों के उन दिनों के बारे में बतलाना है 
खुद को कैसे संभाले ये उन्हें सिखलाना है 

करानी है उन्हें पहचान उन निगाहों की
अच्छे बुरे बदलते हुए जमानों की 

बताना है उसे शारीरिक बदलाव का होना
आसान नहीं होता एक बेटी की मां होना

जो चलती थी कभी घुटनों पर 
कब वो खड़ी हो गई 

पता ही नहीं चलता कि 
ये बेटियां कब बड़ी हो गई

©Garima Srivastava #MainAurMaa#shayari#poetry#insta#jazbaat_by_garima