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रिस्ते- "ज़िंदगी" के साथ - साथ चलती है नित्य बनती,

रिस्ते- "ज़िंदगी" के साथ - साथ चलती है
नित्य बनती, "निखरती"  और बिगड़ती है 

कभी "कड़बी कभी मीठी" सरल बनती है
कभी 'आँखों से आँसू' बनकर निकलती है

ये 'भावना' के तावे पर पग पग उछलती है
कभी रिस्ते के धागे में खुद को जकड़ती है

©अनुषी का पिटारा..
  #रिस्ते #कि #डोर