❣️*हमसे मुकम्मल हुई ना कभी, ए जिन्दगी तालीम तेरी ... शार्गिद कभी हम बन न सके और उस्ताद तूने बनने ना दिया...!! अज्ञात उस्ताद बनने की बड़ी तलब थी तुम्हें काश शागिर्द कभी बने होते, तालीम भी पूरी होती जिंदगी की और तुम भी मुकम्मल हुए होते। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ शागिर्द