हर किसी को देखो यहाँ कुछ ना कुछ छुपाता है, गुमनाम अंधेरो में साजिशों का दीपक जलाता है, डूबती है नईया ज़िन्दगी की जब तो तुफानो में क्यों छटपटाता है, बिना मल्लाह खुद को माझी समझ समंदर में जो उतर जाता है, किनारों की राहे भी कही खो जाती है, जब बीच भवर में खुद वो डूब जाता है, जो हो रहा है उसे होने दो सोते को क्यों जगाता है, फिर मौका नही मिलता सँभलने का, चंद सिक्को की आगोश में जो खुद को खुदा समझ इतराता है.✍️✍️✍️✍️ Written:- By Umesh kumar #साजिशों का दीपक