जलील क्यों न होते हम इस ज़माने में| कितने नजर आते हैं इबादत खाने में|| सनम की याद से फुरसत कहाँ, चमन के मशरूफियत से फुर्सत कहाँ| खुदा तो याद आते हैं रणजोमहन के ज़माने में|| Jalil Q Na Hote Hum Is Jamane Me Kitne Najar Aate Hain Ibadat Khane Me Sanam Ki Yad Se Fursat Kahan, Chaman Ke Mashrufiyat Se Fursat Kahan Khuda To Yad Aate Hain Ranj - o -Mahan ke Jamane me Adnan Rabbani's Shayari • जलील क्यों न होते हम इस ज़माने में| कितने नजर आते हैं इबादत खाने में|| सनम की याद से फुरसत कहाँ, चमन के मशरूफियत से फुर्सत कहाँ| खुदा तो याद आते हैं रणजोमहन के ज़माने में||