न ही वो ढल रहा था न ही वो निकल रहा था था अंदर-ही-अंदर वो दबा हुआ, जो अंदर-ही-अंदर सम्भल रहा था न थी कोई व्यथा, न थी कोई चिंता न वक़्त के साथ उसको कुछ सता रहा था थी फंसी हुई हर शाम उसकी किसी आशियाने के लिए, न जाने फिर भी "हिमांश" क्यों अब किसी से न घबरा रहा था॥ न ही वो ढल रहा था, न ही वो निकल रहा था… (मेरे राम) ©Himanshu Tomar #ढलना #निकलना #हताशा #जीवन #मेरे_राम #समझ #sunrays