गर्माहट तेरी साँसों की ऐसी, पिघल गया मैं, यूँ तेरे सुर्ख लबों का हर रस, निगल गया मैं। हर्फ दर हर्फ पढ़ता रहा तेरे बदन की लकीरें, न जाने क्या हुआ फिर, यूँ ही बदल गया मैं। निगाहें तेरी बयाँ कर रही थी, दिल का हाल, तेरी नाफ़ पे नज़र पड़ी, बस मचल गया मैं। मुद्दतों से जुस्तुज़ू थी किसी का हो जाने की, जो रूह से जुड़ा तेरा जिस्म, बहल गया मैं। वस्ल की ये रात कयामत के हिज़्र पे भारी थी, जो 'इकराश़' मोहबब्त में, कह गज़ल गया मैं। कहते हैं की हिज़्र की रातों में ही ऐसे ख्वाब आते हैं, की वस्ल की रात में महबूब की बाहों का बस इन्तेज़ार होता है। ऐसी ही इक रात में एक मेहबूब के मचलते अर्मानों की दास्तां बयाँ करते मेरे ये अल्फाज, जो आपको अपनी मोहब्बत से मिलने की जुस्तुज़ू में बेचैन करवाये तो इत्तला करियेगा। आपका सदैव, अंजान 'इकराश़'।