तुम्हारा ज़िक्र जब जब होता है, निशब्द हो जाती हूँ मैं तुम्हारा ज़िक्र जब जब होता है, निशब्द हो जाती हूँ मैं अमावश की काली रात में भी पूर्णिमा की चाँद सी चमक जाती हूँ मैं। कुछ हसीन लम्हो को याद कर ,उन लम्हो में खो जाती हूँ मैं अपने इन हरकतों को देख कर खुदसे ही शर्मा जाती हूँ मैं अमावश की काली रात में भी पूर्णिमा की चाँद सी चमक जाती हूँ मैं। कुछ बाते है जो बया न कर पाती हूँ मैं, जिसे ज़ुबा पर लाने से थोड़ी घबराती हूँ मैं, सब को बताना चाहती हूँ ,फिर भी बता न पाती हूँ मैं , अमावश की काली रात में भी पूर्णिमा की चाँद सी चमक जाती हूँ मैं। #love