कुछ दिन पहले हम अपने गांव में रहा करते थे अपने भाईयो जैसे दोस्त के साथ खेला करते थे ना जाने किसकी नजर लग गई उन दिनों को अब तो हम अपनो से ही दूर रहा करते है। ए शहर तू तो सजी है बहुत पर ,मेरे गांव जैसे नहीं दिखती महक तो बहुत है तेरे में पर ,मेरे गांव की मिट्टी जैसे नहीं लगती कहानियां तो बहुत सिखाती है तू ए शहर पर मेरे दादाजी के कहानी के आगे तेरा कुछ सुनाई ही नही देता। सुबह सुबह चिड़ियों का चहचहाना अच्छा लगता है शाम होते ही दोस्तो के साथ खेलना अच्छा लगता है दो अंगुलियों के मिलने से सच्चा मित्र मिल जाए, अच्छा लगता है इस हरियाली में सांस लेना अच्छा लगता है मम्मी की डांट उसके बाद अपने ही हाथों से खाना खिलाना, अच्छा लगता है दादाजी के साथ उनके बचपन को जीना अच्छा लगता है और ना जाने कितने यदि को अपने में समेटी ए गांव मुझे तो बस तू ही अच्छी लगती है। ©Ankur Mishra.. #मेरागांव