मतलबी दोस्त मतलबी तुम तो मतलबी हम भी बन गए। नफ़रत की आग में हम दोनों ही जल गए। विश्वास न तुमने जताया कभी हम पर। ना हम तुम पर कभी भरोसा कर पाए। मिले जब भी तुम मुखौटा चेहरे पर लगाएं। मासूमियत के पीछे दानव को ना देख पाए। खंजर छुपा हाथों में वार किया पीछे से तुने। तेरे मुस्कुराहट से हम ज़रा भी समझ न पाएं। देख तेरे अपनेपन का बनावटी रूप ऐ दोस्त। दिल में जमी तेरी गंदगी हम देख भी ना पाएं। बन गया है तू भी मतलबी दोस्त ज़माने जैसा। इस बात पर भरोसा हम अबतक कर ना पाएं। #मतलबी_दोस्त #December #Poetry