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रक्तिम आभा क्षितिज पर और कलरव खगों का, उषा बेला

रक्तिम आभा क्षितिज पर और कलरव खगों का, 
 उषा बेला में समय हो अलसाये दृगों का।

मरकत की भाँति सूर्य का तेजोमय मुखमंडल,
खुशबू बिखेरती है प्रकृति मानो कोई संदल।

देख दृश्य धरा का यह पुलकित औ' मनभावन,
धरा नहीं वरन सिंगार है यह स्त्री का संभावन।

इस मधुर बेला में खिल रहे पोखर में जलजात, 
भीनी सुगंध पुष्पों की कहीं नृत्य करते पात।

मंद-मंद बहती वायु करती नवजीवन संचार,
भोर समय में ही लेते हैं नव स्वप्न आकार।

धन्य!धन्य! हे प्रकृति मैं तुझ पर अपनी कविता लुटाऊँ, 
मैं "अनाम" नित्य प्रति तेरी सौंदर्य महिमा गाऊँ।  सुप्रभात 

#प्रकृति_की_सुन्दरता
 #अनाम 
#अनाम_ख़्याल 
#morningthoughts
#morningscenes          
#anumika
रक्तिम आभा क्षितिज पर और कलरव खगों का, 
 उषा बेला में समय हो अलसाये दृगों का।

मरकत की भाँति सूर्य का तेजोमय मुखमंडल,
खुशबू बिखेरती है प्रकृति मानो कोई संदल।

देख दृश्य धरा का यह पुलकित औ' मनभावन,
धरा नहीं वरन सिंगार है यह स्त्री का संभावन।

इस मधुर बेला में खिल रहे पोखर में जलजात, 
भीनी सुगंध पुष्पों की कहीं नृत्य करते पात।

मंद-मंद बहती वायु करती नवजीवन संचार,
भोर समय में ही लेते हैं नव स्वप्न आकार।

धन्य!धन्य! हे प्रकृति मैं तुझ पर अपनी कविता लुटाऊँ, 
मैं "अनाम" नित्य प्रति तेरी सौंदर्य महिमा गाऊँ।  सुप्रभात 

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#अनाम_ख़्याल 
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