गुज़र गया है आज भी,यूँ ही बेवजह ही ना ही पुराना फिर हुआ,ना ही हुआ कुछ नया ही मायूस हैं क्यूँ लम्हे,बेबस है क्यूँ निगाहें ढूंढ़ती है जिसको मँज़िलें,वो कहाँ मिला ही ये ज़िदंगी धूप में जलकर,बेज़ार हो रही है टुकड़ों-टुकड़ों में बंटकर,ख़ुशियाँ हजार हो रही हैं दिल में कोई कसक है,कोई खुमारी छा रही है लफ्ज़ों की जरूरत नहीं है,ख़ामोशियाँ शोर मचा रही हैं सच को है सबने देखा पर रास नहीं आया तुम्हें झूठ का पता था फिर दिल से क्यूँ लगाया कोशिशें बहुत की हैं पर मिला कुछ कहाँ ही ना ही रात हमें मिली,ना ही हिस्से में आई सुबह ही... © abhishek trehan ® www.therealdestination.com #din #raat #bevajah #yqdidi #restzone #aetheticthoughts #manawoawaratha #poetryisnotdead