ये कैसा राजनीतिक खेल जहाँ अपनी सत्ता व कुर्सी के खातिर मासूमों के खून से रंग रहे घर अपनी तमाम शहरों को आग में झोंक कर मना रहे है खूनी होली हत्याएँ, बलात्कार, भ्रष्टाचार, असत्य संभाषण चारो और हाहाकार,मातम मचा कर पाखंडी चोला पहनकर जन-जन को बरगलाने के मंत्र फूँक कर सब्ज बाग के वादों का कपट जाल तले बिछा कर मैं'-'मैं' करके लोकतंत्र को इन्होंने मार डाला इंसान की कीमत इनके नजरो मे धूल की कीमत हैं इनके नजरो में अंधे धृतराष्टृ बैठे हैं सिंहासन पर नही दिखता उनको मौत पार्टी के लोगो का नही मौत हो रहा हैं इंसान का किसी के माँग का सिंदूर धूल रहा तो किसी माँ का कोख उजर रहा सम्हल जा वक़्त से पहले न ले इनकी बतदुआ न खेल इंसान की ज़िन्दगी से बैठा ऊपर धृतराष्टृ नही घड़ा पाप का भरते ही मिट जायेगा तेरा नाम ओ निशान यही..।।। ये कैसा राजनीतिक खेल जहाँ अपनी सत्ता व कुर्सी के खातिर मासूमों के खून से रंग रहे घर अपनी तमाम शहरों को आग में झोंक कर मना रहे है खूनी होली हत्याएँ, बलात्कार, भ्रष्टाचार, असत्य संभाषण चारो और हाहाकार,मातम मचा कर पाखंडी चोला पहनकर