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वो राह भी क्या हसीन लगती है जिस राह पर हमराह बने थ

वो राह भी क्या हसीन लगती है
जिस राह पर हमराह बने थे
ये सड़कें तुम्हें ढूंढती हैं बुलाती हैं दुबारा
देखना चाहती है फिर से वो लम्हा
जैसे पहले गले मिले थे।

©Santosh Narwar Aligarh
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