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कला की कद्र ही नहीं । बस शक्लों को देखा जाता है ।।

कला की कद्र ही नहीं ।
बस शक्लों को देखा जाता है ।।
अपनी इक बात रखने के लिए ।
अपने ही दिल को मरोड़ा जाता है ।।
खुद सौ झूठ बोले वो , मेरा एक सच भी नागवारा ।
मुझे मेरे ही अन्दर तोड़ा , झंझोड़ा जाता है ।।
मेरी ये खामोशी , कहीं छीन ना ले पहचान मेरी ।
बस यही सवाल मेरे दिल को दबाये जाता है ।।
भूल जाऊंगा तुझे पतझड़ में पेड़ से टूटे हुए उस पत्ते की तरह ।
तुझे कुछ कद्र नहीं मेरी , अब मेरा भी कुछ नहीं जाता है ।। बस एक बात बता दे तू मुझे ।
हर बार मुझे ही क्यों पेला जाता है ।।😂😂
कला की कद्र ही नहीं ।
बस शक्लों को देखा जाता है ।।
अपनी इक बात रखने के लिए ।
अपने ही दिल को मरोड़ा जाता है ।।
खुद सौ झूठ बोले वो , मेरा एक सच भी नागवारा ।
मुझे मेरे ही अन्दर तोड़ा , झंझोड़ा जाता है ।।
मेरी ये खामोशी , कहीं छीन ना ले पहचान मेरी ।
बस यही सवाल मेरे दिल को दबाये जाता है ।।
भूल जाऊंगा तुझे पतझड़ में पेड़ से टूटे हुए उस पत्ते की तरह ।
तुझे कुछ कद्र नहीं मेरी , अब मेरा भी कुछ नहीं जाता है ।। बस एक बात बता दे तू मुझे ।
हर बार मुझे ही क्यों पेला जाता है ।।😂😂