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इक सितारा सा चमकता है अर्धरात्रि में जागते हुए,

इक सितारा सा चमकता है 
अर्धरात्रि में जागते हुए, 
कर्तव्य पथ पर है अडिग 
कैद घर में रहते हुए।। 
मोह माया छोड़कर
खुद ही खुद से लड़ते हुए, 
मंजिल को अग्रसर है वो 
नदियों सा बहते हुए।।

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