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अच्छा किया प्रभु, पहले ही मोड़ पर... मेरे *मैं* क

अच्छा किया प्रभु,
पहले ही मोड़ पर...
मेरे  *मैं* की,
गर्दन तोड़ कर


शेष अनुशीर्षक में
 प्यारे प्रभु,
अब तुमसे तो कुछ छिपा नहीं, लोगों को ये पता नहीं कि आपने ही मेरे *मैं* की गर्दन मरोड़ कर *मैं* को कैसा मिमियाया था।
मुझे देखो ना ज़रा सी किसी की मदद क्या हुई।मुझसे मैं अहम से भरा रहने लगा था, अच्छा किया वो पहले ही मोड़ पे झटका दिया मुझे और अक्ल ठिकाने लगा दी।
आज।सोचता हूं तो हसी रोक नहीं पाता, कैसे मुंह उठाए तुमसे कहा,
भगवान तुमने मुझे इतना क्यों नहीं दिया की मैं सबको दे सकता।
तुमने जोर से हस कर कहा था, तुम कौन होते हो किसी को कुछ देने वाले, पल भर को तो आग ही लगी थी मुझे, समझ ही नहीं आया तुम्हारे कहने का मतलब क्या हो सकता है।वो जवानी का दौर नासमझी से भरा हुआ,
तब तुम्हीं ने हस कर पूछा था
ये जितने लोग आते हैं तुम्हारे पास रोज़ खून मांगने उन्हें तो तुम दिला नहीं पाते, सबको कैसे क्या दे सकते हो?
अच्छा किया प्रभु,
पहले ही मोड़ पर...
मेरे  *मैं* की,
गर्दन तोड़ कर


शेष अनुशीर्षक में
 प्यारे प्रभु,
अब तुमसे तो कुछ छिपा नहीं, लोगों को ये पता नहीं कि आपने ही मेरे *मैं* की गर्दन मरोड़ कर *मैं* को कैसा मिमियाया था।
मुझे देखो ना ज़रा सी किसी की मदद क्या हुई।मुझसे मैं अहम से भरा रहने लगा था, अच्छा किया वो पहले ही मोड़ पे झटका दिया मुझे और अक्ल ठिकाने लगा दी।
आज।सोचता हूं तो हसी रोक नहीं पाता, कैसे मुंह उठाए तुमसे कहा,
भगवान तुमने मुझे इतना क्यों नहीं दिया की मैं सबको दे सकता।
तुमने जोर से हस कर कहा था, तुम कौन होते हो किसी को कुछ देने वाले, पल भर को तो आग ही लगी थी मुझे, समझ ही नहीं आया तुम्हारे कहने का मतलब क्या हो सकता है।वो जवानी का दौर नासमझी से भरा हुआ,
तब तुम्हीं ने हस कर पूछा था
ये जितने लोग आते हैं तुम्हारे पास रोज़ खून मांगने उन्हें तो तुम दिला नहीं पाते, सबको कैसे क्या दे सकते हो?

प्यारे प्रभु, अब तुमसे तो कुछ छिपा नहीं, लोगों को ये पता नहीं कि आपने ही मेरे *मैं* की गर्दन मरोड़ कर *मैं* को कैसा मिमियाया था। मुझे देखो ना ज़रा सी किसी की मदद क्या हुई।मुझसे मैं अहम से भरा रहने लगा था, अच्छा किया वो पहले ही मोड़ पे झटका दिया मुझे और अक्ल ठिकाने लगा दी। आज।सोचता हूं तो हसी रोक नहीं पाता, कैसे मुंह उठाए तुमसे कहा, भगवान तुमने मुझे इतना क्यों नहीं दिया की मैं सबको दे सकता। तुमने जोर से हस कर कहा था, तुम कौन होते हो किसी को कुछ देने वाले, पल भर को तो आग ही लगी थी मुझे, समझ ही नहीं आया तुम्हारे कहने का मतलब क्या हो सकता है।वो जवानी का दौर नासमझी से भरा हुआ, तब तुम्हीं ने हस कर पूछा था ये जितने लोग आते हैं तुम्हारे पास रोज़ खून मांगने उन्हें तो तुम दिला नहीं पाते, सबको कैसे क्या दे सकते हो? #प्रश्न