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बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं, आओ तुम्

बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं,
आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं|

ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को,
कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,
ये वो लम्हें हैं, जो बाद में नाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

एक ही धुन पर नाच रही थी कब से जिंदिगी,
फिर अलाप दे ‘अंकुर’, के ख्वाब नया साज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं,
आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं|

ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को,
कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं,
आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं|

ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को,
कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,
ये वो लम्हें हैं, जो बाद में नाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

एक ही धुन पर नाच रही थी कब से जिंदिगी,
फिर अलाप दे ‘अंकुर’, के ख्वाब नया साज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं,
आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं|

ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को,
कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,