बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं, आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं| ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को, कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं| बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर, ये वो लम्हें हैं, जो बाद में नाज़ देते हैं| बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… एक ही धुन पर नाच रही थी कब से जिंदिगी, फिर अलाप दे ‘अंकुर’, के ख्वाब नया साज़ देते हैं| बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं, आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं| ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को, कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं| बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं… हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,