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तुम्हारे साथ बिताये हुए वो पल, वो थे सबसे सुनहरे प

तुम्हारे साथ बिताये हुए वो पल,
वो थे सबसे सुनहरे पल…

जब सपनों में तुम थी,
और सामने भी तुम..
जब जिक्र में तुम थी,
जज्बात में भी तुम..
हाँ थे वो सुनहरे पल,
जब पास में तुम थी,
और प्यास भी तुम..

तब मुझमें “मैं” कहाँ था,
बस जी रही थी तुम..
तब मेरा ये जहाँ था,
जब साथ में थी तुम..
जी रहा था जन्नत को जमीं पे,
परी बनके मिली थी तुम..

तुम्हारे साथ बिताये हुए वो पल,
वो थे सबसे सुनहरे पल…

सुबह के धुप में तुम थी,
रात अधेरों में भी तुम..
मेरे अश्कों में तुम थी,
और आशिकी में भी तुम..
दर्द तुमसे था,
दीवानगी में भी तुम..
जी रहा था ख्वाबों को,
जब साथ में थी तुम..

पर जिंदगी अब वो नहीं है,
ना ही साथ में हो तुम..
न दुनिया ख्वाबों की रही,
न चाहत में हो तुम..
दोष किसका दूँ, कहो?
समझाऊं खुद को क्या मैं अब,
कहूँ, दिल था कमजोर मेरा,
या भरोसा तुमको मुझपे कम..
तुम ही बता दो क्या कहूँ,
क्यूँ रूठा मुझसे मेरा कल..?
तुम्हारे साथ बिताये हुए वो पल,
वो थे सबसे सुनहरे पल…

जब सपनों में तुम थी,
और सामने भी तुम..
जब जिक्र में तुम थी,
जज्बात में भी तुम..
हाँ थे वो सुनहरे पल,
जब पास में तुम थी,
और प्यास भी तुम..

तब मुझमें “मैं” कहाँ था,
बस जी रही थी तुम..
तब मेरा ये जहाँ था,
जब साथ में थी तुम..
जी रहा था जन्नत को जमीं पे,
परी बनके मिली थी तुम..

तुम्हारे साथ बिताये हुए वो पल,
वो थे सबसे सुनहरे पल…

सुबह के धुप में तुम थी,
रात अधेरों में भी तुम..
मेरे अश्कों में तुम थी,
और आशिकी में भी तुम..
दर्द तुमसे था,
दीवानगी में भी तुम..
जी रहा था ख्वाबों को,
जब साथ में थी तुम..

पर जिंदगी अब वो नहीं है,
ना ही साथ में हो तुम..
न दुनिया ख्वाबों की रही,
न चाहत में हो तुम..
दोष किसका दूँ, कहो?
समझाऊं खुद को क्या मैं अब,
कहूँ, दिल था कमजोर मेरा,
या भरोसा तुमको मुझपे कम..
तुम ही बता दो क्या कहूँ,
क्यूँ रूठा मुझसे मेरा कल..?