तरबतर हुस्न का नशा है या कुछ और है। बरसती बूँदों का नशा है या कुछ और है। चलो फिर से मैं मैं ना रहूं तुम तुम ना रहो, बरसती बूँदों पर इन फिज़ाओं का एहसास कुछ और है। पर इन पानी की बूँदों ने अक्सर आँसू छुपाए हैं। उतरी कोई अप्सरा है या कुछ और है। बरसती बूँदों में लिपटी ये खामोशियाँ, सच में बेज़ुबान हैं या इशारा कुछ और है? तरबतर हुस्न दिन की ढलती दहलीज पर भीनी भीनी शाम मैं, गुज़रना तेरी राहों से यह बात कुछ और है। ©rishika khushi #हुस्न #nojoto #शाम #नशा_इश्क़_का