मैं वो राख, जो कभी जला था अभी बुझा हूँ मैं बफा की बारिश में ऐसा भटका के, अभी तक उलझा हूँ मैं प्यार का एहसास आज भी वही है सीने में मगर, नफरत हो जाये आपसे जल्दी, इतना भी नही सुलझा हूँ मैं