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कभी हम शक्ति के उपासक थे आज उसके खून के प्यासे हो

कभी हम शक्ति के उपासक थे
आज उसके खून के प्यासे हो गए।
जीवन की सारी कामनाओं की पूर्ति के  आधार
भग नाम की छह शक्ति-स्वरूप थे।
धर्म, ज्ञान, वैराग्य, यश, श्री और ऎश्वर्य 
(अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति प्राकाम्य, ईशीत्व और वशीत्व)।
यही जन्म-स्थिति-मृत्यु का आधार भी है। Good morning 💕👨🍉🍨☕☕🍧🍧🌷🌷
सह शिक्षा के वातावरण में न पौरूष का अंश दिखाई देगा, न ही स्त्रैण भाव। किसी पर भी एक-दूसरे का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता। इससे ज्यादा नुकसान मानवता का और क्या हो सकता है। शरीर रह गया, मानव मर गया। शरीर से सौम्या दिखने वाली भीतर आग्नेय हो गई। समाज को जला देने वाली जैविक नारी जो पूरी तरह आत्मा से अनभिज्ञ है। केवल शरीर को शाश्वत मानकर इसी के लिए जी रही है। तब क्यों मुझे अहिल्या, मीरां, द्रोपदी, मन्दोदरी, सावित्री और शबरी जैसी गाथाएं सुनाई गई। जिन-जिन मूल्यों के आधार पर जीवन का उत्थान परिभाषित किया गया था, समाज ने क्यों निकाल दिया जीवन से? आज तो किसी को जीने और मरने मे भेद ही दिखाई नहीं पड़ता। कैसे  कोई पुरूषार्थ का मार्ग समझ पाएगा। मरते दम तक आज का आदमी गृहस्थाश्रम नहीं छोड़ना चाहता। इन सबका एक कारण यह भी है कि माया शक्ति के बजाए शिव बनने को बेचैन हो उठी।
#komal sharma
#shweta mishra
#mridula arc
#deepti agrawal
#y100ni
फ़ोटो नवरात्रि में कन्या पूजन का है ☺😊🍉🍉☕🍨🍨☕
कभी हम शक्ति के उपासक थे
आज उसके खून के प्यासे हो गए।
जीवन की सारी कामनाओं की पूर्ति के  आधार
भग नाम की छह शक्ति-स्वरूप थे।
धर्म, ज्ञान, वैराग्य, यश, श्री और ऎश्वर्य 
(अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति प्राकाम्य, ईशीत्व और वशीत्व)।
यही जन्म-स्थिति-मृत्यु का आधार भी है। Good morning 💕👨🍉🍨☕☕🍧🍧🌷🌷
सह शिक्षा के वातावरण में न पौरूष का अंश दिखाई देगा, न ही स्त्रैण भाव। किसी पर भी एक-दूसरे का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता। इससे ज्यादा नुकसान मानवता का और क्या हो सकता है। शरीर रह गया, मानव मर गया। शरीर से सौम्या दिखने वाली भीतर आग्नेय हो गई। समाज को जला देने वाली जैविक नारी जो पूरी तरह आत्मा से अनभिज्ञ है। केवल शरीर को शाश्वत मानकर इसी के लिए जी रही है। तब क्यों मुझे अहिल्या, मीरां, द्रोपदी, मन्दोदरी, सावित्री और शबरी जैसी गाथाएं सुनाई गई। जिन-जिन मूल्यों के आधार पर जीवन का उत्थान परिभाषित किया गया था, समाज ने क्यों निकाल दिया जीवन से? आज तो किसी को जीने और मरने मे भेद ही दिखाई नहीं पड़ता। कैसे  कोई पुरूषार्थ का मार्ग समझ पाएगा। मरते दम तक आज का आदमी गृहस्थाश्रम नहीं छोड़ना चाहता। इन सबका एक कारण यह भी है कि माया शक्ति के बजाए शिव बनने को बेचैन हो उठी।
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