कबहुँ निरामिष होय न कागा अबोध ही होता निपट अभागा संकट को देखकर अपने सामने दोस्त को वहाँ छोड़कर है भागा स्वार्थ की सूली पर चढ़ा रिश्ता कच्चा होता विश्वास का धागा बचकर रहना इनके साथ से बच गया वो जो भी है जागा सभी नहीं एक से नहीं यहाँ दिखता हम जैसा ही कागा ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_334 👉 कबहुँ निरामिष होय न कागा लोकोक्ति का अर्थ ---- दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता। ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ दो लेखकों की रचनाएँ फ़ीचर होंगी।