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ख़्वाबों के टूट जाने का डर किसे, उम्मीदों पे ज़िन्

ख़्वाबों के टूट जाने का डर किसे,
उम्मीदों पे ज़िन्दगी जो गुजर रही है,
साथ तो भला उसका छूटे जो कभी पास हो,
यहां तो इंतजार में आंखे छलक रही है,
बेखबर हूं शायद मैं अपनी ही बेवफाई से,
बेवजह तो यू कोई सजा मिल नहीं रही है,
शिकायत जो तुम कर देते दगा की मेरी,
थोड़ी तो आसान होती ज़िन्दगी मेरी,
अब तेरी खामोशी की घुटन चुभ रही है,
काश! तुझको कह पाते कि,
बदल ना लेना अपनी राहों को खफा हो हमसे,
आंखे आज भी राहों में तुम्हे ही तक रही है।

©Akshita Maurya #इंतजार_है_मुझे
ख़्वाबों के टूट जाने का डर किसे,
उम्मीदों पे ज़िन्दगी जो गुजर रही है,
साथ तो भला उसका छूटे जो कभी पास हो,
यहां तो इंतजार में आंखे छलक रही है,
बेखबर हूं शायद मैं अपनी ही बेवफाई से,
बेवजह तो यू कोई सजा मिल नहीं रही है,
शिकायत जो तुम कर देते दगा की मेरी,
थोड़ी तो आसान होती ज़िन्दगी मेरी,
अब तेरी खामोशी की घुटन चुभ रही है,
काश! तुझको कह पाते कि,
बदल ना लेना अपनी राहों को खफा हो हमसे,
आंखे आज भी राहों में तुम्हे ही तक रही है।

©Akshita Maurya #इंतजार_है_मुझे