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युग- युगांतर से मौन सारे , मेरे मन के मरुस्थल पे।

युग- युगांतर से मौन सारे , मेरे मन के मरुस्थल पे।
है। नहीं साहस किंचित ,अधरों तक भी आ सके।

पीड़ा के वो सारे कलेवर  अब उतारे जाँएगे।
कागज़ के खालीपन पे स्याही से उभारे जाँएगे ।

न स्वप्न के प्रलोभन ,न वो बेज़ार किस्से 
सब कष्ट भूलाए जाँएगे ।
मेघ सा हो मन, किंचित नेन नीर न बहाएंगे।

---© सुमीर भाटी युग- युगांतर से मौन सारे , मेरे मन के मरुस्थल पे।
है। नहीं साहस किंचित ,अधरों तक भी आ सके।

पीड़ा के वो सारे कलेवर  अब उतारे जाँएगे।
कागज़ के खालीपन पे स्याही से उभारे जाँएगे ।

न स्वप्न के प्रलोभन ,न वो बेज़ार किस्से 
सब कष्ट भूलाए जाँएगे ।
युग- युगांतर से मौन सारे , मेरे मन के मरुस्थल पे।
है। नहीं साहस किंचित ,अधरों तक भी आ सके।

पीड़ा के वो सारे कलेवर  अब उतारे जाँएगे।
कागज़ के खालीपन पे स्याही से उभारे जाँएगे ।

न स्वप्न के प्रलोभन ,न वो बेज़ार किस्से 
सब कष्ट भूलाए जाँएगे ।
मेघ सा हो मन, किंचित नेन नीर न बहाएंगे।

---© सुमीर भाटी युग- युगांतर से मौन सारे , मेरे मन के मरुस्थल पे।
है। नहीं साहस किंचित ,अधरों तक भी आ सके।

पीड़ा के वो सारे कलेवर  अब उतारे जाँएगे।
कागज़ के खालीपन पे स्याही से उभारे जाँएगे ।

न स्वप्न के प्रलोभन ,न वो बेज़ार किस्से 
सब कष्ट भूलाए जाँएगे ।
sumeerbhati8784

Sumeer Bhati

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