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उसकी कमजोरी शायद किसी तहखाने में बंद है, यही चर्चा

उसकी कमजोरी शायद किसी
तहखाने में बंद है,
यही चर्चा में है आज, यही द्वंद है।
मैंने उस बुजुर्ग से पूछा है नजरों नजरों में,
ये पर्वत कब तक टूटेगा?
उसने कहा, बस हथौड़ा और वक़्त साथ रहे।
मैं उसपर भरोसा करने को मजबूर हूँ।
कोई कहता है कि भाई
हथौड़ा लेकर पर्वत से लड़ने वाले
विश्वास के काबिल नहीं होते।
मुझे लगता है कि इस घोर कलयुग में
रक्त में राम न हों पर
थाली में रोटी चाहिए,
इस बात का भरोसा किया जा सकता है? बुजुर्ग और पर्वत
उसकी कमजोरी शायद किसी
तहखाने में बंद है,
यही चर्चा में है आज, यही द्वंद है।
मैंने उस बुजुर्ग से पूछा है नजरों नजरों में,
ये पर्वत कब तक टूटेगा?
उसने कहा, बस हथौड़ा और वक़्त साथ रहे।
मैं उसपर भरोसा करने को मजबूर हूँ।
कोई कहता है कि भाई
हथौड़ा लेकर पर्वत से लड़ने वाले
विश्वास के काबिल नहीं होते।
मुझे लगता है कि इस घोर कलयुग में
रक्त में राम न हों पर
थाली में रोटी चाहिए,
इस बात का भरोसा किया जा सकता है? बुजुर्ग और पर्वत