वो हसीन रास्ते, वो बस का सफर, वो बस की एक सीट जिस पर हम दो प्रेमी युगल बैठा करते थे । पथ पे आने वाले एक एक वृक्ष को गिना करते थे । एक से सौ तक की गिनती के बिच तुम्हारा गिनती भूल जाना नवासी और उनन्यासी के बिच में तुम्हारा चूक जाना । स्वच्छन्द गगन पे निर्विकार जैसे पछियों का गमन है उसी प्रकार मेरे इस ह्रदय में तुम्हारा आवागमन है । एक दिन तुम्हारे हाथ से मेरा हाथ स्पर्श हुआ ना जाने किस प्रकार का इस ह्रदय में हर्ष हुआ । ऐसा लगा एक तीर रक्त धमानियों में लागा है मेरा हृदय अति तीव्र गति से रक्त को लेकर भागा है । फिर धीरे धीरे तुमने मुझमें प्रेम प्रवाह का सृजन किया फिर मेरे ह्रदय ने तुम्हारे ह्रदय से मिलन किया । इस प्रेम नदी की प्रवाह में एक दिन सुनामी आयी तुम्हारी ओर से वापस मेरी प्रेम की निशानी आयी । वो निशानी जिसको मैंने एक एक पैसे करके जोड़ा था क़र्ज़ चुका ना पाने के कारण साहूकार ने मुझको तोड़ा था । ये एक ज़ख्म भरा नहीं तुम नये ज़ख्म लगाने आयी हो औषधि की उम्मीद थी तुमसे तुम नमक लगाने आयी हो। क्या मेरा प्रेम प्रवाह बस यहां दम तोड़ गया मेरी जेब खाली हुई और मेरा सनम छोड़ गया । क्या इसी प्रेम के खातिर तुमने माँ के जेवर गिरवी रखवाये क्या इसी प्रेम के लिए मैंने अपने जीवन के स्वर्णिम क्षण गवाएं । मेरी माँ से तुम्हारे लिए मैं लड़ाई करके आया था दोस्त से पैसे लेकर ये प्रेम निशानी लाया था । मेरे वास्तविक प्रेम का क्या तुमने यही मोल दिया बस संपत्ति से ही मेरे प्रेम को तौल दिया । ईश्वर करें तू जिसके भी साथ रहे जान मेरी तू ख़ुश रहे आबाद रहे । आज तेरे शहर से निकला तो याद आयी तेरी धुंधली झलक मेरे पास आयी । और बोली हसीन रास्ते, वो बस का सफर, वो बस की एक सीट जिस पर हम दो प्रेमी युगल बैठा करते थे । पथ पे आने वाले एक एक वृक्ष को गिना करते थे । ©shivesh pandit vichitr #scribbled #thescribbledstories #scribbledstories #writersofinstagram #wordporn #poetsociety #bookofteenager #microtales #thewritingspook #washroomstories