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पास में कोई नहीं फिर ग़म बयां किससे करूँ? है परेशा

पास में कोई नहीं फिर ग़म बयां किससे करूँ?
है परेशां दिल बहुत,पर हमनशीं कोई नहीं??
है ज़रूरी साथ दिल-सा ज़िन्दगी में 
किन्तु साथी दिल-सा मुझको
अब तलक है मिल न पाया/या कहूँ यूँ मैं किसी को
अब तलक़ न रास आया!
हमसफ़र की आश दिल में कब से अपना घर बनाये/
किन्तु प्यारे! 
बस निराशा हाथ आई ज़िन्दगी में
जाने क्योंकर?फिर भी पथ पर चल रहा
नित मन का राही अनवरत् है,
चाह लेकर हमक़दम राही मिलेगा एक दिन ख़ुद 
अपने दिल से जो कहेगा चाहिये मुझको भी प्यारे
एक साथी सिर्फ़ तुम-सा/
कर सके जो अन्त ग़म का/जो कि हमने ख़ुद बनाये/
वरना जीवन चाहता है
जीने वाला बस खुशी के गीत गाये/गुनगुनाये/
ज़िन्दगी ख़ुद गीत है,संगीत है,उत्सव है ख़ुद में/नृत्य भी है/
*सतीश तिवारी 'सरस'

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #Raftaar_ए_ज़िन्दगी