जो कहने को ग़ज़ल कहते थे न कहने वाली। पर उनका अंदाज़ था सबसे जुदा सबसे आली। न कहने को भी वो कहते थे बार बार और उनकी इस अदा पर थे सैकड़ों जां निसार कुदरत से भी था उनका साथ बे नियाज़ क्यू कि आती थी उनके सामने मुस्किले बार बार डरते नहीं थे वो लड़ते थे हरदम कमाल सा दिखलाते थे वो दुनिया को आईना बार बार अहले दुनिया भी देख कर दंग रह जया करती थी कि कैसे कर लेते हैं वो ये बार बार🤫 जुबा तीखी निगाह कातिल लहज़ा नरम था उनका पर वो बनते रहे सच्चाई का सबब हर बार।। टीपू शेख....🤭 #ग़ज़ल# Ritika suryavanshi Suman Zaniyan