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क्या ही जिंदगी है, क्या ही सहारा है दो वक्त की रोट

क्या ही जिंदगी है, क्या ही सहारा है
दो वक्त की रोटी के लिए भी मजदूर 
अपने छोटे से बच्चे को भी काम पर ला रहा है। 
मां देख देख अंदर सिमड़ सी जाती है
देख हालत घर की वो ज़हर ए घूट पी जाती है
बच्चे का बचपन भी मजदूरी में नज़र आता है
न दया है किसी को इनसे, बस सबको पैसा प्यारा है
क्या ही जिंदगी है, क्या ही सहारा है....

©Akash Mohan
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