मेरा सवाल खुद से "मै क्यों नहीं " ? हर कोई खुश है अपनी ज़िंदगी में तो फिर मै क्यों नहीं ? क्या,मै खफा नहीं हो अपने आपसे तो फिर मै खुश क्यों नहीं ? हाँ,मैं प्यार के लिए भूखी हूँ लेकिन अपने लिए इतना प्यार क्यों नहीं ? क्यों,मैं दूसरों पर भरोसा करती हूँ इतना कि मुझे अब खुद पे इतना भरोसा क्यों नहीं ? क्यों,मैं अब हर किसी से दूर भाग रही हूँ मैंने तो कभी भागना सीखा ही नहीं? क्यों,मैं चाहती हूँ की कोई साथ हो मेरे क्या,मैं अपने लिए अकेली काफी नहीं ? क्यों,अब मै अपने ही सवालों में उलझी रहती हूँ मुझे तो उलझना पसद ही नहीं ? क्यों,मैं इन सवालों के जवाब किताबों में खोज रही हूँ क्या,मैं अब खुद के सवाल के जवाबा के काबिल नहीं ? "मै क्यों नहीं "?...