तीन कुण्डलिया छंद (1) मन की कविता कीजिये,मन से भी कुछ आप. नींद न आये जब करें,राम नाम का जाप. राम नाम का जाप,प्रेम से कहें जानकी. जय लछिमन महाराज,करें रक्षा जो प्रान की. कह सतीश कविराय,जीत होवे जीवन की. करिये कविता आप,बैठकर कुछ तो मन की. (2) जो मन से लाचार हैं,लिख नइँ सकते गीत। लिखने के हित चाहिये,सद्भावों से प्रीत।। सद्भावों से प्रीत,साथ में बल समता का। भूल घृणा का भाव,चाहिये सँग ममता का।। कह सतीश कविराय,गूढ़ रिश्ता जीवन से। लिख सकता वह गीत,सबल होवे जो मन से।। (3) राखी के इस पर्व पर,सबको नम्र प्रणाम। महादेव रक्षा करें,रहें कृपारत् राम। रहें कृपारत् राम,नाम सब खूब कमायें। भरा रहे धनधान्य,ज़िन्दगी में सुख पायें।। कह सतीश कविराय,प्रफुल्लित हो मन-पाँखी। भ्रात रहे खुशहाल,सफल भगिनी की राखी।। *सतीश तिवारी 'सरस',नरसिंहपुर (म.प्र.) ©सतीश तिवारी 'सरस' #छंद