लगता था जानता हूं उस शख्स को वादे जिसने तमाम किए थे महफिलों में जाम गिरा आए थे उस दौर में जब उसके लिए जिए थे धीरे धीरे वक्त बदला फिर बो बदले कुछ ख्वाब टूटे वादे टूटे और हाथ छुटे और फिर हुआ यूं कि बदनसीबी ने पहुंचा दिया हमें फिर उसी महखाने में जहा से निकल कर जाम तोड़ने के इरादे किए थे ©Dixit Bhardwaj पुरानी बातें