सफलता के शिखर "
तस्मात् असक्तः सततम् कार्यम् कर्म समाचर,
असक्तः हि आचरन् कर्म परम् आप्नोति पूरुषः
यदि हमने बहुत बड़ा, यानी दुनिया का सबसे बड़ा कार्य करने का मन बना लिया हो और हम अपने सपनो की दुनियां को साकार करने को आतुर हो जाएं
ऐसी स्थिति में हमे रिस्ते, नाते,भाई, बंधु ,दोस्त ऐसे मोह को छोड़कर वही करना चाहिए, जो हमें करना है
यानी कि अपना "कर्म"