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याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई आप के इंतिज़ा

याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई
आप के इंतिज़ार में उम्र तमाम हो गई

पी है जो एक बूँद भी जाग पड़ी है ज़िंदगी
ऐसी शराब-ए-जाँ-फ़ज़ा कैसे हराम हो गई

साथ किसी ने छोड़ कर तोड़ दिया किसी का दिल
चल तो पड़ा था कारवाँ राह में शाम हो गई

निकले ब-याद-ए-मय-कदा तारों के साथ साथ हम
जाम तक आ के ज़िंदगी माह-ए-तमाम हो गई

रास न आई ज़ीस्त को सुब्ह-ए-बहार की हवा
अहल-ए-जुनूँ की अंजुमन ख़ल्वत-ए-जाम हो गई

आज वो मुस्कुरा दिए आज हमारी ज़िंदगी
आग से फूल बन गई फूल से जाम हो गई

बज़्म से बे-ज़बाँ उठे राह में गुफ़्तुगू न की
कैसे हमारी दास्ताँ शहर में आम हो गई

रात की जश्न-गाह पर ओस पड़ी है नींद की
बाद-ए-सहर न जाने क्यूँ महव-ए-ख़िराम हो गई

सुन ली ज़बान-ए-ख़ल्क़ से हम ने ग़ज़ल 'नक्श' की
कौन सी ख़ास बात है किस लिए आम हो गई

©Jashvant
  #yaad-e-gazal  Anshu writer munish writer Mukesh Poonia vineetapanchal Anupma Aggarwal