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तेरे इश्क़ में भटका मुसाफ़िर रह-नुमा हो गया। मंज़ि

तेरे इश्क़ में भटका मुसाफ़िर रह-नुमा हो गया।
मंज़िल मिले न मिले, पर तुझ में गुमां हो गया।।

जिन टूटे कांच के टुकड़ों पर तेरी परछाई पड़ी।
वो कांच ख़ुद ब ख़ुद जुड़ कर आइना हो गया।।

तुमने मेरे माथे पर सुर्ख़ होंठों से चूमा ही था कि।
मैं गुल, मैं गुलबदन ओ मैं ही गुलिस्तां हो गया।।

ज़िंदगी मुक्कमल हो गई तुझको बाहों में भरके।
मैं लगा सीने से तो सिमटकर आसमां हो गया।।

ये सच है चारों ओर बज़्म में बस मेरे ही चर्चे थे।
तेरे आने के बाद मेरा आना खामखां हो गया।।

©Shivank Shyamal तेरे इश्क़ में भटका मुसाफ़िर रह-नुमा हो गया।
मंज़िल मिले न मिले, पर तुझ में गुमां हो गया।।

जिन टूटे कांच के टुकड़ों पर तेरी परछाई पड़ी।
वो कांच ख़ुद ब ख़ुद जुड़ कर आइना हो गया।।

तुमने मेरे माथे पर सुर्ख़ होंठों से चूमा ही था कि।
मैं गुल, मैं गुलबदन ओ मैं ही गुलिस्तां हो गया।।
तेरे इश्क़ में भटका मुसाफ़िर रह-नुमा हो गया।
मंज़िल मिले न मिले, पर तुझ में गुमां हो गया।।

जिन टूटे कांच के टुकड़ों पर तेरी परछाई पड़ी।
वो कांच ख़ुद ब ख़ुद जुड़ कर आइना हो गया।।

तुमने मेरे माथे पर सुर्ख़ होंठों से चूमा ही था कि।
मैं गुल, मैं गुलबदन ओ मैं ही गुलिस्तां हो गया।।

ज़िंदगी मुक्कमल हो गई तुझको बाहों में भरके।
मैं लगा सीने से तो सिमटकर आसमां हो गया।।

ये सच है चारों ओर बज़्म में बस मेरे ही चर्चे थे।
तेरे आने के बाद मेरा आना खामखां हो गया।।

©Shivank Shyamal तेरे इश्क़ में भटका मुसाफ़िर रह-नुमा हो गया।
मंज़िल मिले न मिले, पर तुझ में गुमां हो गया।।

जिन टूटे कांच के टुकड़ों पर तेरी परछाई पड़ी।
वो कांच ख़ुद ब ख़ुद जुड़ कर आइना हो गया।।

तुमने मेरे माथे पर सुर्ख़ होंठों से चूमा ही था कि।
मैं गुल, मैं गुलबदन ओ मैं ही गुलिस्तां हो गया।।