एक इश्क़ ऐसा भी पढ़ें अनुशीर्षक में सुनो आजकल देख रही हूँ तुम बदल गये हो..अभी तो गर्मियाँ शुरू भी नही हुई और तुम अभी से दूर जाने लगे हो..ऐसा भी क्या हो गया अचानक? अभी कुछ दिन पहले तक तो मुझे होंठों से लगाने को तड़प जाया करते थे और अब मेरी तरफ देखना भी मुनासिब नही समझते.. भूल गये जब काम के बीच में बहाने बना के ऑफिस से निकल जाया करते थे और चुप-चाप एक कोने में छुप के मेरे धुंए को अपनी सांसों में समा जाने देते थे..और शाम को खाना पचाने के बहाने टहलते टहलते वो गली के नुक्कड़ वाली दुकान तक सिर्फ मेरे लिये आते थे... तब तो बड़ा सुकून मिलता था तुम्हे.. लोग कहते कहते थक गये की मत पियो मत पियो पर तुम सबको अनसुना कर मेरी तलब के नशे में चूर थे.. और अब क्या करते हो..मैं वहीँ पान वाले की दुकान में पड़ी पड़ी तुम्हारा रस्ता निहारती हूँ और तुम उसी दुकान के सामने से गुजरते हो पर मेरी तरफ देखते भी नही.. कितने निर्मोही हो गये हो तुम.. और हाँ सुना है आजकल उस मरजानी नींबू पानी और वो मुआ नारियल पानी उस पे सारा ध्यान लगा है तुम्हारा.. वो ज्यादा ख़ास हो गये हैं आजकल? अच्छा एक बात बताओ क्या तुम्हारे होंठों को उनका स्वाद ज्यादा भाने लगा है या वो ज्यादा संतुष्टि देते हैं तुम्हे?