“हरसिंगार” सागर मंथन से प्राप्त हुआ ये दिव्य पौधा मांँ सीता ने वनवास में गूंथ श्रृंगार किया था धन्य हो उठा ये पारिजात का पौधा तब नाम हुआ इसका हरसिंगार अनुशीर्षक में उठो जब भोर में आश्विन के महीने में चारहूंँ ओर खुशबू बिखरे पारिजात के फूल ने पूरा वातावरण माहौल खुशनुमा हो जाए ठंडी ठंडी हवा के झोंके ओस की बूंदें मोती जैसे फूलों पर बिखरे हुए तन मन को सुगंधित कर महका दे ये पारिजात के पौधे घर के क्यारियों में मिट्टी पर सिंदूरी सफेद पंखुड़ी मखमली सी फैले हुए