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जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों

जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में
कितने शाखों पर लटक जाते हैं , सिर्फ इस बात को बताने में ।
लाडली उम्र पर है ब्याह के अब , फसल सूखी पड़ी कुम्भला रही है
थके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें , गरीबी साथ बढ़ती जा रही है
बड़ा मजबूर है ये देव भू का , कर्ज के रेत को चबाने में
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में ।
मन हूआ छुटकी भी स्कूल जाए , मगर माँ की दवाई जा रही है
नहीं कटती रजाई बिन जो रातें , समझदारी में कटती जा रही है
न बदला हाल पर मौसम है बदला , ये सर्दी और बढ़ती जा रही है
देखकर कांपते मासूम बचपन , गरीबी खुद में ही शर्मा रही है
मुझे बस याद करती है हुकूमत , सियासी रोटियां पकाने में
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में।
सियासी पर्व अब है आने वाला , कृषक तब याद उनको आ रहा है
कहाँ पर किसको है कैसे फसाना , कई फन्दा बनाया जा रहा है
बजट के जाल पर रोटी बिछाकर , ख़्वाब झूठा दिखाया जा रहा है
शहर से गांव तक हर रेलियों में , झूठ का घर बनाया जा रहा है
बहुत मेहनत हुकूमत कर रही है , हमारी अर्थियां सजाने में ।
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में।
कितने शाखों से लटक जाते हैं , सिर्फ इस बात को बताने में।।
आदर्श सिंह

©Adarsh Singh #FarmerProtest

#nojotohindi2020 #anamikajain #IndianWritingCommunity #Status#poetry #nojotonew

#FarmBill2020 
#nojotowriters 

#InspireThroughWriting
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में
कितने शाखों पर लटक जाते हैं , सिर्फ इस बात को बताने में ।
लाडली उम्र पर है ब्याह के अब , फसल सूखी पड़ी कुम्भला रही है
थके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें , गरीबी साथ बढ़ती जा रही है
बड़ा मजबूर है ये देव भू का , कर्ज के रेत को चबाने में
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में ।
मन हूआ छुटकी भी स्कूल जाए , मगर माँ की दवाई जा रही है
नहीं कटती रजाई बिन जो रातें , समझदारी में कटती जा रही है
न बदला हाल पर मौसम है बदला , ये सर्दी और बढ़ती जा रही है
देखकर कांपते मासूम बचपन , गरीबी खुद में ही शर्मा रही है
मुझे बस याद करती है हुकूमत , सियासी रोटियां पकाने में
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में।
सियासी पर्व अब है आने वाला , कृषक तब याद उनको आ रहा है
कहाँ पर किसको है कैसे फसाना , कई फन्दा बनाया जा रहा है
बजट के जाल पर रोटी बिछाकर , ख़्वाब झूठा दिखाया जा रहा है
शहर से गांव तक हर रेलियों में , झूठ का घर बनाया जा रहा है
बहुत मेहनत हुकूमत कर रही है , हमारी अर्थियां सजाने में ।
जरा खेतों के भी तरफ देखो , जख्म दिख जाएंगे किसानों में।
कितने शाखों से लटक जाते हैं , सिर्फ इस बात को बताने में।।
आदर्श सिंह

©Adarsh Singh #FarmerProtest

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