स्कूल और बेंच क्या लिखूँ मैं तुझ पर, सच तो ये है तुझमे कभी रहम नही है, वरना हर बार तेरे शुल्क के लिए मैं डांट नहीं सुनता। माना के मेरी गरीबी थी, फिर भी तो मै तेरे साथ रहा, नही थे मेरे घर में मुझे पढ़ाने की हैसियत फिर भी दोस्तो से मिलकर तो हर तेरा टास्क बनाया करता था फिर भी तुझे मुझ पर रहम नही आई, आखिर मे छोड़ना पड़ा तेरा साथ, समझ नही आता तु दोस्त था या दुश्मन। जा तुझे माफ़ किया दिल को तोड़ने वाले...