" कोना या किनारा ",
तुम्हें पता है खुद के बारे, जब तुम घिर जाते हो किसी अजीब से , चिंता से, अवसाद से, किसी बेख्याली ख्याल से जो तुम्हें बार - बार परेशान करे अंदर ही अंदर खाये कुतरे और कुतरता ही रहे एक लम्बे वक़्त के लिए, तो तुम क्या करते हो,.? अरे.. पता ही होगा न खुद के बारे अब इतना मालूम तो होता ही है सबको,..
खुद का बताती हूँ अपने अनुभवों के आधार पर, मैं अक्सर पकड़ लिया करती थी घर का नहीं अपने मन का ही कोई कोना, और शुरू हो जाता रोना - पीटना, खुद को कोसना, दोषारोपण करना, बजाय के मैं निकल